नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं किए जाने पर कोर्ट ने जताई निराशा
वहीं दूसरी ओर, अधिकारियों को राजधानी में 1984 के सिख विरोधी दंगों की पुनरावृत्ति नहीं होने देने के लिए आगाह करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार (26 फरवरी) को कपिल मिश्रा और भाजपा के अन्य नेताओं के खिलाफ कथित नफरत भरे भाषण देने के मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं किए जाने पर निराशा जताई। अदालत ने पुलिस आयुक्त से इस मामले में गुरुवार (27 फरवरी) तक सोच-विचारकर फैसला करने को कहा।
उत्तर पूर्व दिल्ली में रविवार (23 फरवरी) को भड़के सांप्रदायिक दंगों को रोक पाने में दिल्ली पुलिस की कथित नाकामी पर नाराजगी जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने पुलिस को पेशेवेर तरीके से काम नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया। दंगों में कम से कम 27 लोग मारे जा चुके हैं और करीब 200 लोग घायल हो गए।
शीर्ष अदालत ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को हिंसा भड़काने वालों पर रोकथाम नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि उन्हें किसी की मंजूरी का इंतजार किए बिना कानून के अनुसार काम करना चाहिए। न्यायमूर्ति एस एम कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा, ''अगर कोई भड़काऊ बयान देता है, तो पुलिस को कार्रवाई करनी होगी।"