नई रणनीति के बाद भी भाजपा दिल्ली में हारी











 

 

समाचार रिपोर्टर

छत्तीसगढ़ ज्योति

 

नई दिल्ल.दिल्ली में 1998 से लगातार सत्ता से बाहर भाजपा को एक बार फिर विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। नई रणनीति, अहम राष्ट्रीय मुद्दे और पूरी ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा के हिस्से में पिछली बार से कुछ ही सीट ज्यादा आई हैं। साथ ही, उसका वोट भी छह फीसद से ज्यादा बढ़ा है, लेकिन सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के मुफ्त बिजली, पानी व महिलाओं को डीटीसी में फ्री यात्रा के मुद्दे का भाजपा कोई तोड़ नहीं निकाल सकी। हालांकि उसने शाहीन बाग को भी मुद्दा बनाया और इसका उसे लाभ भी मिला, लेकिन इतना नहीं कि वह आम आदमी पार्टी से बराबरी का मुकाबला कर सके। इससे नेतृत्व की चिंता बढ़ गई है।























भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने विपरीत स्थिति में भी इस बार के चुनाव को प्रतिष्ठा का चुनाव बनाकर लड़ा। चुनावों की घोषणा के पहले एकतरफा चुनाव माना जा रहा था, लेकिन बाद में गृह मंत्री अमित शाह की अगुआई में भाजपा ने गली-कूचे तक पहुंचकर बराबरी की टक्कर देने की कोशिश की। भाजपा को भरोसा था कि जामिया, जेएनयू से लेकर शाहीन बाग तक के मुद्दों पर धुव्रीकरण होगा और उसे लाभ मिलेगा। ये सब मुद्दे तो बने, लेकिन इतना बड़े नहीं कि आम आदमी पार्टी को सत्ता में आने से रोक सकें। 


चिंता से ज्यादा चिंतन की जरूरत
ये नतीजे भाजपा के लिए चिंता से ज्यादा चिंतन के विषय हैं। भाजपा में अब नया नेतृत्व आ गया है। यह असफलता भाजपा के नए अध्यक्ष जेपी नड्डा के सिर तो नहीं बंधेगी, लेकिन उनको अब दिल्ली का तोड़ निकालना होगा। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा कि चुनाव शुरू होने के पहले जो स्थिति थी, वह काफी खराब थी, लेकिन चुनाव अभियान में बड़े नेताओं की मेहनत से हालात बदले। 38 फीसद से ज्यादा वोट काफी मायने रख रखते हैं। अगर कांग्रेस अपना पिछला प्रदर्शन भी दोहराती तो नतीजे और होते।