भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने विपरीत स्थिति में भी इस बार के चुनाव को प्रतिष्ठा का चुनाव बनाकर लड़ा। चुनावों की घोषणा के पहले एकतरफा चुनाव माना जा रहा था, लेकिन बाद में गृह मंत्री अमित शाह की अगुआई में भाजपा ने गली-कूचे तक पहुंचकर बराबरी की टक्कर देने की कोशिश की। भाजपा को भरोसा था कि जामिया, जेएनयू से लेकर शाहीन बाग तक के मुद्दों पर धुव्रीकरण होगा और उसे लाभ मिलेगा। ये सब मुद्दे तो बने, लेकिन इतना बड़े नहीं कि आम आदमी पार्टी को सत्ता में आने से रोक सकें।
चिंता से ज्यादा चिंतन की जरूरत
ये नतीजे भाजपा के लिए चिंता से ज्यादा चिंतन के विषय हैं। भाजपा में अब नया नेतृत्व आ गया है। यह असफलता भाजपा के नए अध्यक्ष जेपी नड्डा के सिर तो नहीं बंधेगी, लेकिन उनको अब दिल्ली का तोड़ निकालना होगा। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा कि चुनाव शुरू होने के पहले जो स्थिति थी, वह काफी खराब थी, लेकिन चुनाव अभियान में बड़े नेताओं की मेहनत से हालात बदले। 38 फीसद से ज्यादा वोट काफी मायने रख रखते हैं। अगर कांग्रेस अपना पिछला प्रदर्शन भी दोहराती तो नतीजे और होते।