रेत माफिया, दारू माफिया और भूमाफिया भी अब ग्रामीण सत्ता में पैर जमाने की कोशिश में


 


 


Report by


Chhattisgarh Jyoti



रायपुर। जो लोग पहले गांव जाने से कतराते थे अथवा ग्रामीण सत्ता से जुड़ने में  हिचकते थे अब उन लोगों में भी ग्रामीण सत्ता से जुड़ने के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है। सबको   मालूम हो गया है कि ग्रामीण सत्ता से जुड़कर भी बड़ा धन कमाया जा सकता है और अपनी साख में इजाफा किया जा सकता है। सरकार के द्वारा ग्रामीण इलाकों में जिस तरह से मूलभूत सुविधाओं में लगातार बढ़ोत्तरी की जा रही है और गांव की चमक-दमक बढ़ी है, गांव की सत्ता से जुड़ने के प्रति हर वर्ग में आकर्षण बढ़ा है। हाल ही में जो पंचायत निकाय के जो चुनाव संपन्न हुए हैं उसमें सत्ता हासिल करने के लिए जिस तरह से धन फूंका गया उससे आकलन किया जा सकता है कि ग्रामीण सत्ता हासिल करने के लिए लोगों में कितना आकर्षण बढ़ गया है।
राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर इलाकों ें जमीन सीमित हो गई है। ये जमीनें सघन आबादी से खचाखच भर गई हैं। शहरी क्षेत्रों में जमीन बेचकर भूमाफियाओं ने मोटी कमाई की है और इस मोटी कमाई का पैसा भूमाफियाओं, दलालों के साथ-साथ सत्ता शासन-प्रशासन से जुड़े तमाम लोगों तक पहुंचा है। भूमाफियाओं को अब शहरी क्षेत्रों में बेचने के लिए जमीन नहीं मिल  रही है। जो जमीनें हैं उनकी कीमतें भी भारी बढ़ गई हैं। ऐसे में भूमाफिया भी नई जमीनें तलाश कर रहे हैं। सस्ते दर पर नई जमीन  मिलने से उन्हें अधिक मुनाफा होता है। शहरी क्षेत्रों में अब ऐसी जमीनें मिलने से रही तो इन भूमाफियाओं का ग्रामीण क्षेत्रों की ओर दायरा बढ़ता जा रहा है। खासतौर पर शहरी इलाकों से जुड़े गांव में पिछले पांच वर्षों के दौरान खेती की जमीन का बड़े पैमाने पर डायवर्सन कराया गया और आवासीय उपयोग के लिए इनकी बिक्री की गई। स्वाभाविक रूप से  इस जमीन खरीदी बिक्री के धंधे से भूमाफियाओं को बड़ी मोटी कमाई हुई है और इस मोटी कमाई से जो लालच पैदा हुआ है वह आसानी से छूटने वाला नहीं है। खेती की जमीन का आवासीय उपयोग में डायवर्सन करने के लिए स्थानीय सत्ता की अनुशंसा अथवा अनुमति आवश्यक है। ऐसे हालत में भूमाफिया के लोग अनिवार्य रूप से तो यही चाहेंगे कि ऐसे इलाकों में जहां उन्हें जमीन की खरीदी बिक्री करनी है वहां की स्थानीय सत्ता में उनका काम अटकाने वाले लोग नहीं रहे अथवा उनके काम में सहयोग करने वाले लोग ही सत्ता में आ सके। राजधानी रायपुर से लगे अमलेश्वर ग्राम पंचायत क्षेत्र में पिछले दस वर्षों के दौरान इतने बड़े पैमाने पर निजी आवासीय कालोनियां विकसित हुई हैं तथा खेती की जमीन का डायवर्सन हुआ है इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह हाल अकेले अमलेश्वर ग्राम पंचायत क्षेत्र का नहीं है अमलीडीह, डूमरतराई से लेकर राजधानी रायपुर की सीमा से जुड़े लगभग सभी ग्राम पंचायत क्षेत्रों में यही हाल है। असल में नया राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में आवासीय व्यवसायिक व औद्योगिक उपयोग के लिए जमीन की मांग में लगातार भारी बढ़ोत्तरी होती जा रही है। उरला, सिलतरा, बीरगांव तथा उसके आसपास के गांव में औद्योगिक उपयोग के लिए बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी और बेची गई है। यही हाल दुर्ग जिले का भी है। दुर्ग जिले में भिलाई शहर से लगे हुए गांव में आवासीय उपयोग होते हुए जमीन की बड़े पैमाने पर खरीदी बिक्री हुई है तो वहीं औद्योगिक उपयोग के लिए भी ये जमीन खरीदा बेचा गया। वास्तव में यह सब पूरा काम भूमाफिया के लोग कर रहे हैं। दुर्ग और रायपुर जिले में शहर से जुड़े हुए कई गांव अब शहर की ही शक्ल लेते जा रहे हैं  ऐसा बदलाव यहां की नई बसाहट के कारण  आया है। जमीन की कीमतें बढ़ी हैं इनका उपयोग बढ़ा है तो भूमाफियाओं के लालच में भी बढ़ोत्तरी हुई है। ये भूमाफिया किसी भी कीमत में जाकर खेती की जमीनों का डायवर्सन करा रहे हैं। अथवा करा लेना चाहते हैं। कहा जाता है कि ऐसी आवश्यकताओं के चलते जिन इलाकों में जमीन की मांगें बढ़ी हैं वहां की स्थानीय सत्ता के पास धन तथा बाहुबल में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इस बार के चुनाव में खबर है कि भूमाफियाओं के लोगों में भी अपनी पसंद के लोगों को चुनाव जिताने के लिए भारी पैसा बहाया तथा अपनी पसंद के प्रत्याशियों के जीत के लिए हर संभव मदद करने की कोशिश की। यह सब इसलिए हुआ ताकि भूमाफियाओं के कामों में आगे कहीं अड़चन न आए। 
भूमाफियाओं के साथ-साथ रेत माफिया भी पूरे प्रदेश में पैर फैला चुके हैं और सत्ता शासन प्रशासन के बीच इनकी तूती बोलती है। कहा जाता है कि कोई भी गलत काम हो अथवा सही इनके काम को कोई रोकता नहीं है।  जब से राज्य में दारू के धंधे पर नकेल लगाई गई है। दारू के धंधे से जुड़े लोग भी रेत के धंधे में पूरा दम लगा रहे हैं और इस धंधे में कब्जा करने में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। शहरी इलाकों में रेत की खदानें न के बराबर हैं ज्यादातर रेत खदानें ग्रामीण इलाकों में ही है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जो रेत का उत्खनन होता है चाहे वह अवैध हो अथवा वैध उस पर पूरा नियंत्रण ग्रामीण सत्ता का ही होता है। रेत माफिया किसी भी हाल में अपने  धंधे पर कोई रुकावट नहीं चाहते चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़ी। ग्रामीण सत्ता में जब कई जगह उनके कामों में रेत उत्खनन में स्थानीय सत्ता के द्वारा अड़चनें पैदा की जाने लगी तब से रेत माफिया के लोग भी हर हालत में चाहते हैं कि रेत उत्खनन वाले पंचायत क्षेत्रों में उनका आदमी ही सत्ता में चुनाव जीतकर पहुंचे। और इसके लिए वे धन और पूरी ताकत झोंकने को तैयार दिख रहे हैं।
इस तरह से  अंदाजा लगाया जा सकता है और समझा जा सकता है कि गांव के सत्ता की क्या अहमियत हो गई है और इसका महत्व कितना अधिक बढ़ गया है। इसलिए इस सत्ता को हासिल करने अथवा इसमें अपना आदमी बैठाने भूमाफियाओं और रेत माफियाओं तथा दारू माफियाओं के द्वारा जी-जान लगाया जाने लगा है। अभी कहा जा रहा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जितनी दारू बंटी है उससे पचास गुना अधिक दारू ग्रामीण सत्ता के चुनाव के दौरान  बंट गई। इस तरह से त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के जिला पंचायत सदस्य, जनपद पंचायत सदस्य तथा सरपंचों का अपना अलग महत्व व प्रभाव बढ़ता जा रहा है। किसी गांव में कितने प्रतिशत जमीन का डायवर्सन किया जाना चाहिए? खेती की कितनी जमीन का आवासीय अथवा औद्योगिक उपयोग के लिए डायवर्सन किया जाना चाहिए। यह कुछ स्पष्ट नहीं है। ऐसी अस्पष्टता के चलते गांव में खतरनाक तरीके का बदलाव दिख रहा है। यह बदलाव आगे चलकर गांव के वातावरण को दूषित भी कर रहा है। इस पर सरकार को निर्णय लेना चाहिए की यह बदलाव कहां तक होना चाहिए। 
तमाम माफिया ऐसी कमियों का फायदा उठा रहे हैं। अब वे सब स्थानीय सत्ता में भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की जुगत लगा रहे हैं ताकि स्थानीय सत्ता से उनका कोई काम अटके नहीं और वे अपने मनमाफिक सब काम करा सकें। ये स्थितियां निश्चित रूप से खतरनाक बन रही है। राज्य सरकार की अभी तारीफ करनी होगी कि वह गांव को गांव ही बने रहने देने के लिये वहां की संस्कृति को, भारतीय ग्रामीण संस्कृति को जीवित रखने के लिए तमाम योजनाएं बना रही हैं। नरवा, गरुवा, घुरुवा, बारी के माध्यम से ग्रामीण संस्कृति को तथा वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के प्रयास किये जा रहे हैं। ऐसे में तमाम माफिया वर्ग के लोग गांव में घुसते जाएंगे तो ग्रामीण संस्कृति के तार-तार होने के आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। भूमाफिया के लोग ग्रामीण गांव की जमीन की खरीदी बिक्री नहीं कर रही है वरन किसी न किसी तरीके से गांव की जमीन पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण कराया जा रहा है। खास तौर पर सड़क के किनारे की जमीन पर तथा चौक चौराहों पर धार्मिक स्थल का रूप देकर भी कब्जा करने की तैयारी की जा रही है। ऐसे में ग्रामीण सत्ता कोई कागजी सत्ता नहीं रह जाने वाली है वरन आगे चलकर राज्य और प्रदेश को वृहद स्तर पर प्रभावित करती नजर आएगी। इन परिस्थितियों में ग्रामीण सत्ता में किसे बैठना चाहिए? किसका इस पर कब्जा होना चाहिए? इन सभी बातों पर बहुत गंभीरतापूर्वक सतर्कता बरतने की जरूरत हो गई है। इससे शायद ही कोई इंकार करे कि गांव की गलियों में भी अवैध रूप से खुलेआम दारू बिक रही है और इसे रोकने वाला कोई न हीं दिखता।