ripot by
Arshi raza
प्यार तो दिलीप कुमार के दौर से लेकर कार्तिक आर्यन के जमाने तक कन्फ्यूजिंग रहा है, लेकिन बड़ी बात यह है कि जिंदा है। प्यार को संभालने के अंदाज जरूर पीढ़ियों के साथ बदलते जाते हैं। लेकिन एक अटल सत्य यह है कि प्यार अपनी मंजिल को हर हाल में पाना चाहता है। इम्तियाज अली की नई वाली 'लव आज कल' भी इसी दास्तां को कह रही है। लगभग ऐसी ही बातें उन्होंने दस साल पहले आई 'लव आज कल' में भी की थीं। अब निर्देशक ने एक परत और खोली है।
फिल्म दो कहानियों पर सवार है। 2020 की कहानी को एक मॉडर्न लड़की है जोई(सारा अली खान) के एंगल से दिखाया गया है और पुरानी कहानी को रणदीप हुडा के एंगल से। दोनों कहानियां के हीरो वैसे कार्तिक आर्यन ही हैं। सारा का किरदार अपना करियर बनाना है, लेकिन मौज मस्ती की जिंदगी जीने में उसे कोई दिक्कत नहीं है। प्यार से वो दूर रहना चाहती है, लेकिन वीर तो केवल प्यार में ही पड़ने में यकीन रखता है। वीर मानता है कि प्यार तो 100% हो तो ही करना नहीं पुरानी कहानी 1990 की है। ये लीना और रघु का किस्सा है। दोनों में बेइंतहा प्यार है, लेकिन उस प्यार को अपनी गलतियों से खोने का एहसास भी है। एक पीढ़ी ने अपने प्यार को पाने और खोने में क्या-क्या गलतियां की, उनका अंदाज कहां चूक गया... यही है 'लव आज कल' का सार। इम्तियाज अली ने इस फिल्म में खुद को दोहराया है, फिर भी इसे देखना बुरा नहीं लगता। फिल्म इंटरवेल तक धीमी है और स्क्रीनप्ले भी कमजोर है। क्लाइमेक्स तक मामला संभल जाता है, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका होता है। एक्टिंग के मामले में कार्तिक आर्यन सबसे अलग नजर आए हैं। उनकी पुरानी सारी फिल्मों से यह फिल्म एकदम जुदा है। कार्तिक आर्यन ने इस फिल्म में एक तरह से खुद को साबित कर दिया है। वो रणवीर सिंह की राह पर बढ़ रहे हैं। बतौर अभिनेता वो गंभीर हुए हैं। सारा अली खान के जोई वाले किरदार को देखकर लगता है कि यह बिल्कुल सारा जैसा ही है। रणदीप के साथ उनके सीन बढ़िया हैं। 'लव आज कल' भीड़ से अलग है लेकिन ये महान फिल्म नहीं है। इसे एक बार देख सकते हैं। फिल्म को समझने में थोड़ी मेहनत करना होगी।