report by
Arshi raza
रंगभरी एकादशी के दिन भगवती गौरा को विदा कराने और उनके साथ होली खेलने के बाद अगले दिन द्वादशी, छह मार्च को नटेश्वर के भक्त पारंपरिक गीतों की अनुगूंज के बीच चिता भस्म की होली खेलेंगे। खड़ी दोपहरी में ठीक 12 बजे श्मशानेश्वर महादेव मंदिर में आरती के उपरांत तपती चिताओं के बीच बाबा के भक्त चिताओं की भस्म से होली खेल कर पौराणिक परंपरा का निर्वाह करेंगे।
25 साल पहले फिर हुई शुरुआत
मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर के अनुसार पौराणिक काल से चली आ रही परंपरा का निर्वाह पूर्व में संन्यासी और गृहस्त संन्यासी दोनों मिलकर किया करते थे। कालांतर में यह प्रथा लुप्त हो गईर्। अब से करीब 26 वर्ष पूर्व मणिकर्णिका मोहल्ले के कुछ निवासियों और मंदिर प्रबंधन परिवार के सदस्यों ने इसकी पुन: शुरुआत की। कहते हैं कि रंगभरी एकादशी के दिन गौरा की विदाई कराने के बाद द्वादशी तिथि पर बाबा बाबा भूत, प्रेत, गण सहित कई अदृश्य शक्तियों के साथ मसान पर होली खेलने महाश्मशान पर जाते हैं।
होली के अवसर पर ही दिगंबर हुए शिव
महाराज दक्ष की प्रथम पुत्री पार्वती के साथ भगवान शंकर का विवाह हुआ। उनकी शेष 27 कन्याओं के साथ चंद्रमा की शादी हुई है। होली के दिन सालियों ने भगवान शिव पर रंग का छींटा मारा, रंग चांद की आंख में पड़ गया। चांद की आंख से जल की बूंद निकलकर शिव के कमर में बंधे व्याघ्रचर्म पर पड़ी। चंूकि चांद का जल अमृत है इसलिए बूंद की बूंद व्याघचर्म पर पड़ते ही वह जीवित हो शिव के कमर से निकल कर चलने लगा। भगवान शंकर दिगंबर हो गए। लोकलज्जा से बचने के लिए तब वह महाश्मशान चले गए क्योंकि वहां नारियों का जाना वर्जित है।