Report by
Arshi raza
गुजरात के अमरैल जिले की धारी तहसील के पूर्व जंगलों में काफी समय से एशियाई शेरों की मौत हो रही है। बहुत से शेरों का रेस्क्यू कर चिकित्सा के लिए उन्हें अलग-अलग एनीमल केयर सेन्टर में लाया गया है। इनमें से भी कई शेरों की मौत हो गई है। किन्तु वन विभाग ने अभी तक इसे रूटिन कार्य बताते हुए छिपाने का प्रयास किया किन्तु विपक्ष के नेता परेश धानाणी और वाइल्ड लाइफ बोर्ड के सदस्य तथा प्रकृति प्रेमियों का दबाव बढ़ने पर वन विभाग ने कबूल किया कि बेबसिया बीमारी के कारण शेरों की मौत हो रही है।जानकारी के अनुसार खांभा- तुलसीश्याम, जशाधार, सावरकुंडला तथा हडाला सहित विविध रेंज में काफी समय से शेरों की अप्राकृतिक मौत का सिलसिला जारी था। इसकी जानकारी बाद में वन विभाग को हुई। इसके कारण धारी गीर पूर्व के अलग-अलग क्षेत्रों से जाँच के लिए शेरों का सेम्पल लिया गया। इसका रिपोर्ट आने के बाद उनका रेस्क्यू कर अलग-अलग एनिमल केयर हॉस्पीटल में रखा गया है।हालाकि वन विभाग के कर्मचारियों ने इसे रूटिन बताते हुए कहा कि मौत भी रूटिन ही है। इस बारे में वाइल्ड लाइफ बोर्ड के सदस्य ने शेरों के केनाइन डिस्टेम्पर (सीडीवी) की जाँच तो वहीं विपक्ष के नेता ने मौत और रेस्कयू की जानकारी मांगी। वहीं सेव लायन नामक संस्था ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका की चेतावनी दी, वहीं पर्यावरण विद सांसद ने इस बारे में वन विभाग की आलोचना की। इन बाबतों के मद्देनजर वन विभाग के सी.सी.एफ. ने कहा कि शेरों में बेबसिया नामक रोग फैला है। इसके कारण उनमें हीमोग्लोबिन की कमी होती है। इसी से उनकी मौत हो जाती है। वन विभाग ने अभी तक स्पष्ट नहीं किया है कि कितने शेरों का सेंपल लिया, कितनों का रेस्क्यू और कितनों की मौत हुई है।जानकारी के अनुसार रेस्क्यू किए गये शेरों को अलग-अलग एनीमल केयर सेंटर में रखा गया था। वन विभाग ने इनमें से छह शेऱों को छोड़ दिया है। इसमें से खांभा रेंज से 13 शेरों का रेस्क्यू कर जशाधार में चिकित्सा के लिए रखा गया था। इनमें से आठ बाल शेरों के अतिरिक्त शेरनियों को छोड़ा गया। जबकि बाल शेरों को बाद में छोड़ दिया जायेगा। इस निर्णय का भी अलग-अलग कयास लगाया जा रहा है।